
Piggery Businessman Ajay Tiwari’s success story

खाटी ब्राह्मण परिवार के फतेहपुर निवासी अजय तिवारी ने किया था सूअर पालन का व्यवसाय, अब इजी चिकन से करोड़ों का बिजनेस
खाटी ब्राह्मण परिवार के अजय तिवारी ने 1992 में जब सुअर पालन के क्षेत्र में उद्यमिता शुरू की तो लोगों को बेहद अटपटा लगा। अब सुअर पालन के अनुभव के साथ उन्होंने मुर्गीपालन का काम शुरू किया और आज वे 100 करोड़ टर्नओवर वाली कंपनी ‘इतरमा पोल्ट्री एलएलपी’ के मालिक बन गए हैं। अजय ने इस फर्म की शुरुआत महज 7500 रुपये से की थी। उस दौरान उनकी फर्म में 200 मुर्गियां थीं, आज इनकी संख्या 10 लाख से अधिक हो चुकी है।
अब अजय का बिजनेस कानपुर के अलावा प्रयागराज, फतेहपुर, उन्नाव और लखनऊ तक फैल चुका है। उनके 24 पोल्ट्री फार्म हैं। अब कंपनी ने खुद चूजे तैयार करने और आम लोगों को हाईजेनिक चिकन उपलब्ध कराने का भी काम शुरू कर दिया है। शहर में इसके इजी चिकन के नाम से आउटलेट भी शुरू किए जा चुके हैं। अजय बताते हैं कि वह ग्राहकों के स्वास्थ्य का ख्याल रखते हुए चिकन तैयार करते हैं।यही कारण है कि उनके चिकन आउटलेट काफी पसंद किए जा रहे हैं।
यहां-वहां हुई पढ़ाई, इकोनॉमिक्स से किया एमए
अजय बताते हैं कि उनके पिता शिवदास तिवारी पुलिस विभाग के एसएचओ पद से रिटायर हुए हैं। जब तक वह पुलिस में थे, तब तक जहां उनकी तैनाती होती, अजय भी वहीं जाकर पढ़ाई करते रहे। हाईस्कूल जीआईसी झांसी से किया और इंटरमीडिएट बीएनएसडी इंटर कॉलेज, कानपुर से। इसके बाद क्राइस्ट चर्च कॉलेज से 2004 में बीए और फिर इकोनॉमिक्स से एमए की पढ़ाई पूरी की। मां लीलादेवी गृहिणी हैं। भाई संजय तिवारी कॉमर्स मिनिस्ट्री में विशेष सचिव हैं। दो बहनें शशि त्रिवेदी और सीमा पांडेय की शादी हो चुकी है। वे मूलत: फतेहपुर के हिम्मतपुर गांव के निवासी हैं।
दरोगा की नौकरी मिली, लेकिन नहीं करी
अजय बताते हैं कि 1999 में उन्हें यूपी पुलिस के सब इंस्पेक्टर पद पर नौकरी मिल गई थी, लेकिन पिता जी ने ज्वॉइन करने से मना कर दिया था। अजय शुरू से ही आर्मी में जाना चाहते थे। इसके लिए एनसीसी सी सर्टिफिकेट भी हासिल किया था, लेकिन जिस दिन आर्मी की परीक्षा थी, उसी दिन पैर टूट गया। इसके बाद अजय ने खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला ले लिया।
ट्यूशन की कमाई, सुअर-पालन में लगाई
वर्ष 1992 से 2003 तक अजय ने खुद पढ़ने के साथ दूसरों को भी ट्यूशन पढ़ाया। इससे करीब दस लाख रुपये कमाए। इससे कमाई रकम और कुछ पिता जी से लेकर 1998 में सुअर पालन का बिजनेस शुरू किया, लेकिन इसमें सबकुछ डूब गया। इसके बाद भी अजय ने हार नहीं मानी। उन्होंने 2001 में मुर्गीपालन का फार्म खोला। 7500 रुपये लगाकर दो सौ मुर्गियां खरीदीं। धीरे-धीरे यह बिजनेस बढ़ता गया और आज वह इसे अपनी कामयाबी का सबसे बड़ा माध्यम मानते हैं।